नीतीश कुमार को क्यों कहते है पल्टूराम , कितनी बार बदला पाला? इस बार मोहभंग होने की ये हैं 5 वजह

नीतीश कुमार को क्यों कहते है पल्टूराम , कितनी बार बदला पाला? इस बार मोहभंग होने की ये हैं 5 वजह

Bihar CM Nitish Kumar: जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) एक बार फिर से एनडीए के साथ जाने वाली है. बिहार समेत देशभर में इन दिनों इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रही है.

Nitish Kumar: बिहार में इस वक्त कड़ाके की सर्दी पड़ रही है, लेकिन राज्य की राजनीति गरमाई हुई है. इसकी वजह ये है कि बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) अध्यक्ष नीतीश कुमार के एक बार फिर से पाला बदलने की चर्चाएं जोरों पर हैं. नीतीश के महागठबंधन छोड़ने की चर्चाएं ऐसे समय पर हो रही हैं, जब आने वाले कुछ महीनों में देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. नीतीश महागठबंधन के साथ-साथ विपक्ष के इंडिया गठबंधन का भी हिस्सा हैं.

नीतीश कुमार की तरफ से पिछले कुछ दिनों से जिस तरह की बयानबाजी की गई है या फिर उनके जरिए जैसे कदम उठाए गए हैं. उसने इस बात की ओर इशारा करना शुरू कर दिया है कि बिहार में जल्द ही बड़ा ‘खेल’ होने वाला है. नीतीश कुमार कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में भी शामिल नहीं हो रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि हाल ही में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए वंशवादी राजनीति पर निशाना साधा था.

एनडीए के साथ जाने की चर्चाएं

हालांकि, ये पहली बार नहीं होगा, जब नीतीश कुमार किसी गठबंधन को तोड़कर दूसरे दल से हाथ मिला रहे हैं. वह एनडीए, महागठबंधन को लेफ्ट पार्टियों के साथ पहले भी हाथ मिला चुके हैं. इस बार भी चर्चाएं हैं कि नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ जाने वाले हैं. वह पहले भी बीजेपी के साथ सरकार बना चुके हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि नीतीश कुमार ने कब-कब पाला बदला है और इस बार किस चीज को लेकर उनका महागठबंधन से मोहभंग हो गया है.

कितनी बार पाला बदल चुके हैं नीतीश? 

1974 में छात्र राजनीति के जरिए पॉलिटिक्स में एंट्री मारने वाले नीतीश कुमार अब तक पांच बार पाला बदल चुके हैं. जनता दल का हिस्सा रहे नीतीश कुमार ने पहली बार 1994 में पाला बदला. समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस, ललन सिंह के साथ मिलकर 1994 में नीतीश ने समता पार्टी बनाई. 1995 के विधानसभा चुनाव के लिए समता पार्टी ने वामदलों के साथ गठबंधन किया. मगर जब सफलता हाथ नहीं लगी तो उन्होंने वामदलों का हाथ छोड़ा और एनडीए में शामिल हो गए.

1996 में नीतीश कुमार ने दूसरी बार पलटी मारते हुए एनडीए का दामन थामा. बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के साथ नीतीश का सफर 2010 तक चला. फिर एनडीए में नरेंद्र मोदी  के बढ़ते कद को देखते हुए 2014 में नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा. उनके खाते में दो सीटें आईं और फिर 2010 में सीएम बनने वाले नीतीश ने सीएम पद छोड़ दिया. 2015 में तीसरी बार पलटी मारते हुए उन्होंने महागठबंधन बनाया. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह सीएम भी बन गए.

महागठबंधन के साथ उन्होंने 2017 तक सरकार चलाई. इस दौरान वह सीएम पद पर काबिज रहे. हालांकि, फिर तेजस्वी यादव का नाम IRCTC घोटाले में आया और नीतीश ने चौथी बार पलटी मारते हुए बीजेपी में जाने का फैसला किया. 2020 चुनाव में जब जेडीयू को 43 सीटें मिलीं तो उन्हें दिक्कतें होने लगीं. इसके बाद उन्होंने 2022 में पांचवीं बार पलटी मारते हुए बीजेपी का दामन छोड़ा और फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए.

नीतीश के मोहभंग की वजह क्या है? 

हालांकि, अब यहां सवाल उठता है कि 2022 में महागठबंधन में आने वाले नीतीश का एक-डेढ़ साल के भीतर ही क्यों इससे मोहभंग हो गया है. आखिर वो कौन सी वजहें हैं, जिनके चलते नीतीश कुमार छठी बार पाला बदलने की तैयारी कर रहे हैं.

इंडिया संयोजक नहीं बनने से नाराज: विपक्ष ने लोकसभा चुनाव के लिए इंडिया गठबंधन बनाया है. इसमें महागठबंधन के दल (कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू और वाम दल) शामिल हैं. नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि उन्हें इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा. मगर ऐसा नहीं हुआ, जिससे उनके नाराज होने की खबरें आईं.

इंडिया सीट शेयरिंग में देरी: नीतीश का मानना है कि चंद महीनों में चुनाव होने हैं, ऐसे में इंडिया गठबंधन को हर राज्य में सीट बंटवारा जल्द से जल्द करना चाहिए. बिहार की 40 सीटों में से नीतीश 14-16 सीटें चाहते हैं. इस पर भी सहमति नहीं बन रही है. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को 6 सीटें मिलेंगी, जो उसे मंजूर नहीं है.

इंडिया गठबंधन में कोई भविष्य नहीं: नीतीश आठ बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. हालांकि, नीतीश को मालूम है कि अगर इंडिया गठबंधन को चुनाव में जीत मिलती है और उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में जगह दी जाती है, तो भी वह सीएम पद छोड़कर उसे नहीं लेंगे. उन्हें इंडिया में अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा है.

चुनाव से पहले माहौल भांपना: राम मंदिर बनने के साथ ही नीतीश कुमार जान चुके हैं कि हवा बीजेपी की तरफ बह रही है. उन्हें लगता है कि बीजेपी को जीत मिलेगी और इंडिया गठबंधन की जीत मुश्किल है. ऐसे में नीतीश मानकर चल रहे हैं, अगर बीजेपी को हराया नहीं जा सकता है तो उसके साथ जाना ही बेहतर होगा.

छवि को सुधारने का मौका: महागठबंधन में आते ही बीजेपी ने नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचारियों के साथ जाने का आरोप लगाया. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से लेकर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव तक पर घोटाले का केस चल रहा है. ऐसे में नीतीश का ये मानना हो सकता है कि चुनाव से पहले अपनी छवि को साफ किया जाए.

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